3 नवम्बर 1957 को रूस द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गये कुत्ते के साथ क्या हुआ था
अंतरिक्ष अनुसंधान का वह काला सच जिसकी बात कोई नहीं करना चाहता
वह जानवर जिसे अंतरिक्ष अनुसंधान के नाम पर मरने के लिए छोड़ दिया गया जिसे वह बेजुबान जानवर बिल्कुल भी डिजर्व नहीं करता था
स्पेस एक्सप्लोरेशन का वह काला सच जिसकी बात कोई नहीं करना चाहता दोस्तों इतिहास में कई सारे ऐसे स्पेस मिशन हुए हैं जिनमें अलग-अलग जानवरों को अंतरिक्ष में भेजा गया लेकिन अगर हम इतिहास में झांक कर देखें कि वह कौन सा जानवर था सबसे पहले किसी स्पेस मिशन का हिस्सा बना तो हमारे दिमाग में एक ही नाम निकाल कर आता है और वह है लाइका।
आपने बहुत ही किताबों और मैगजिन आदि में पढ़ा होगा कि लाइका एक खुशनसीब कुतिया थी जिसे एक महान स्पेस मिशन का हिस्सा बनाया गया और रूस में रिसर्च सेण्टर के बाहर बना लाइका का स्मारक भी हमें ऐसा ही सोचने पर मजबूर करता है।
लेकिन क्या सच में यह लाइका की खुशनसीबी थी या फिर हम इंसानों ने अपने फायदे के लिए बेजुबान जानवर की बलि चढ़ाई थी और कैसे थे लाइका के जीवन का वह आखिरी पल जिसमें वह चाह कर भी अपनी दर्दनाक कहानी किसी को सुना नहीं सकती थी।
और क्यों स्पेस लांच के एक दिन पहले इस मिशन के साइंटिस्ट ब्लादिमीर लाइका को अपने घर ले गए थे इनका जवाब आज हम आपको इस लेख में देने वाले हैं।
एक ऐसी अनकही सच्ची घटना है जिसे सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएँगी इसलिए इस लेख को अंत तक जरुर पढ़े
हम सब जानते हैं कि नील आर्मस्ट्रांग वह पहले इंसान थे। जिन्होंने 1969 के दौरान चांद पर कदम रखा था लेकिन क्या आपको पता है इतिहास में पहली बार स्पेस ट्रैवल करने वाले पहले इंसान कौन थे इनका नाम है युरी गैगरिन जो एक सोवियत रूस से थे।
युरी गैगरिन ने यह कीर्तिमान 1961 में बनाया जब उन्हें पृथ्वी की ऑर्बिट का चक्कर लगाने के लिए एक मिशन पर भेजा गया लेकिन क्या आपको लगता है कि हम इंसानों ने स्पेस में जाने का यह रिस्क ऐसे ही खुद पर ले लिया था अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप बिल्कुल गलत है दरअसल इंसान कोई भी चीज खोजने या उसे अपने ऊपर आजमाने से पहले अलग-अलग जानवरों पर उसका परीक्षण करता है।
जिस तरह नई दवाइयों की खोज शुरू करने में सबसे पहले चूहों और खरगोश वगैरा पर उनका एक्सपेरिमेंट किया जाता है ठीक वैसे ही स्पेस में किसी इंसान को भेजने से पहले कई सारे जानवरों को वहां भेजा गया था और इन्हीं जानवरों की लिस्ट में सबसे ऊपर है लाइका।
वैसे लाइका से पहले भी वैज्ञानिक कुछ मक्खियों कीड़े मकोड़ो और चूहों को इस तरह के मिशन का हिस्सा बन चुके थे साथ ही साथ अल्बर्ट नाम के बंदर को भी 1948 में सब ऑर्बिटल स्पेस फ्लाइट का हिस्सा बनाया गया था लेकिन ये फूल फ्लेजर स्पेस मिशन नहीं थे।
इसलिए इतिहास में लाइका ही वह पहली जानवर मानी जाती है जिसे स्पेस ट्रैवल कराने के लिए भेजा गया
लेकिन यह सब हुआ कैसे और इस मिशन के लिए लाइका कुत्तिया को ही क्यो चुना गया चलिए इस कहानी को थोड़ा शुरुआत से जानते हैं।
दोस्तों हुआ यु की 1961 में फर्स्ट ह्यूमन मिशन को अंजाम देने से पहले स्पेस ट्रैवल हमारे लिए कुछ अनसुलझे रहस्य की तरह था कोई नहीं जानता था कि स्पेस में जाकर इंसान जीवित रह सकता है या नहीं।
और इसी सवाल का जवाब खोजने के लिए दुनिया भर की स्पेस एजेंसी अलग-अलग जानवरों और कीड़े मकोड़ो को स्पेस में भेजा करती थी।
इस दौरान 1957 में सोवियत यूनियन ने अपने स्पूतनिक- 1 सैटेलाइट को स्पेस में सफलतापूर्वक लॉन्च किया स्पेस एक्सप्लोरेशन के फील्ड में इंसानों को मिली एक बहुत बड़ी कामयाबी थी क्योंकि ये पहली ऐसी सैटेलाइट थी जिसे इंसानों ने पृथ्वी के ऑर्बिट में सफलता पूर्वक पहुचाया
इस सफलता के नशे में डूबा सोवियत यूनियन अब बहुत ही जल्दी इंसान को स्पेस में भेजना चाहता था।
वास्तव में ये ओ दौर था जब सोवियत यूनियन और अमेरिका के बीच में स्पेस प्रतिस्पर्धा चल रही थी दोनों देश किसी भी तरह इस फील्ड में किसी भी कीमत पर एक दुसरे से आगे निकलना चाहते थे इस जल्दबाजी में रूस ने अपना अगला मिशन स्पुतनिक -2 लांच करने की योजना बनाई जिसमे इस बार उन्होंने अंतरिक्ष में कुत्ते को भेजने की योजना बनाई।
जिस समय यह योजना बनाया जा रहा था लाइका मास्को के सडको पर घुमने वाली साधारण सी मादा कुतिया थी कोई उसे देखकर ये कभी सोच नही सकता था की कुछ ही दिनों में यह अंतरिक्ष की यात्रा पर जाने वाली है।
अमेरिका से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा में सोवियत यूनियन ने अपने वैज्ञानिकों को यह दूसरा मिशन लॉन्च करने के लिए सिर्फ चार हफ्ते का समय दिया और शायद इसी चीज का जुर्माना बाद में उस बेचारे मासूम डॉग को भरना पड़ा
रशियन वैज्ञानिक दिन रात इस मिशन को पूरा करने की तैयारी में जुटे हुए थे उन्होंने इसके लिए स्पेशल स्पेसक्राफ्ट बनाया जो खास तौर से कुत्ते के लिए डिजाइन किया गया था इस छोटे से अंतरिक्ष यान में कार्बन डाइऑक्साइड ऑब्जर्वर और ऑक्सीजन जनरेटर जैसे उपकरणों के साथ कुत्ते के शरीर को ठंडा रखने के लिए पंखा भी लगाया गया था।
प्लान के मुताबिक कुत्ते को 7 दिन अंतरिक्ष की यात्रा में जिंदा रखना था इसके लिए यान के केबिन में केवल 7 दिन का खाना रखा गया था और उसके मल मूत्र को कलेक्ट करने के लिए स्पेशल बैग भी डिजाइन की गई थी।
इस स्पेस का केबिन इतना छोटा था कि कुत्ते को इसमें चलना फिरना तो दूर खड़ा भी नहीं हो जाया सकता था
लेकिन 28 दिन के अंदर वैज्ञानिक ऐसा अंतरिक्ष यान तैयार कर सकते थे इस स्पेसक्राफ्ट को बनाने का सारा काम तो समय से हो गया लेकिन अब बारी थी इस मिशन के लिए एक कुत्ते को ढूंढने की
रशियन वैज्ञानिक इसके लिए जानबूझकर एक आवारा कुत्ते को चुनना चाहते थे क्योंकि वह घरेलू कुत्तों की तुलना में ज्यादा एक्सट्रीम कंडीशंस में सरवाइव कर सकते हैं।
इसी खोज के दौरान उनकी नजर लाइका पर पड़ी जो मास्को की सड़कों पर रहने वाली 3 साल की मादा डॉग थी शरीर के आकार से लेकर शारीरिक स्वास्थ्य हर चीज में लाइका वैज्ञानिकों के पैमाने पर खरी उतरी थी इसलिए इस मिशन के लिए उसको चुन लिया गया मिशन लॉन्च होने से पहले वैज्ञानिकों ने करीब 20 दिन लाइका को इसके लिए ट्रेनिंग दिया उन्होंने इसे जानबूझकर स्पेसक्राफ्ट के केबिन जैसे पिंजरे में रखा था कि लाइका को उसकी आदत हो जाए भविष्य से बेखबर बेचारी लाइका वैज्ञानिकों की हर एक टेस्ट को पास करती गई।
यहाँ हम आपको बता दें उस दौर के वैज्ञानिक स्पेस में जाने का तरीका तो जानते थे लेकिन वहां से लौटना कैसे हैं इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं था यानी यह एक सुसाइड मिशन था इसमें लाइका का मरना तय था असल में वैज्ञानिक इस मिशन के जरिए सिर्फ यह पता लगाना चाहते थे कि पृथ्वी पर रहने वाले जीवित प्राणी को जब स्पेस में भेजा जाता है तो उसके शरीर पर क्या असर पड़ता है उन्हें सिर्फ डेटा चाहिए था।
लांच से 3 दिन पहले ही लाइका को जंजीरों से बांधकर उस स्पेसक्राफ्ट केबिन में बैठा दिया गया था ताकि उसे इस पोजीशन में बैठने की आदत हो जाए।
जब स्पेसक्राफ्ट भी रेडी था और लाइका भी अपने मिशन पर जाने के लिए तैयार थी तभी लॉन्च के एक दिन पहले मिशन साइंटिस्ट डॉक्टर बालदिमीर लाइका को अपने घर ले जाते हैं और एक फिर डॉग की तरह उसे खेलने कूदने का मौका देते हैं इसे लेकर उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि लाइका काफी शांत और प्यारी डॉग थी उसके पास जीने के लिए बहुत कम समय बचा था इसलिए मैं उसके लिए कुछ अच्छा करना चाहता था क्योंकि स्पूतनिक- 2 धरती पर वापस नहीं लाया जा सकता था वैज्ञानिक जानते थे कि कुछ ही दिनों में अंतरिक्ष में उसकी मौत हो जाएगी।
इसलिए उसके खुराक में एक धीमे जहर को मिलाया गया था ताकि वह बिना किसी तकलीफ से अपनी जान डे सके
लाइका के किस्मत में एक दर्दनाक मौत ही लिखी थी। आखिरकार वह दिन आ गया 3 नवंबर 1957 जब लाइका का स्पेसक्राफ्ट उड़ान भरने के लिए तैयार था कुछ और वैज्ञानिक भी थे जिन्हें लाइका से लगाव हो गया था इसलिए केबिन को आखरी बार बंद करने से पहले वैज्ञानिको ने लाइका के चेहरे को चूमते हुए मिस यू लाइका बोला क्योंकि उन्हें मालूम था कि अब यह कभी वापस लौटकर नहीं आएगी
भारतीय समय के अनुसार सुबह के करीब 8:00 बजे अंतरिक्ष यान ने एक सफल उड़ान भरी और देखते ही देखते यह आसमान में मिलो दूर पहुंच गया।
शुरुआत में सब कुछ ठीक था लेकिन तभी एक टेक्निकल फाल्ट की वजह से इस स्पेसक्राफ्ट का एक हिस्सा इससे अलग नहीं हो पाया इसकी वजह से केबिन का तापमान तेजी से बढ़ने लगा और गर्मी से होने वाली घबराहट के कारण लाइका की हार्टबीट 240 तक पहुंच गई वह इन हालातो से करीब 5 घंटे तक लड़ती रही लेकिन फिर तापमान इतना ज्यादा बढ़ गया कि बेचारे जानवर ने दम तोड़ दिया सोचिये वह 5 घंटे उसके लिए कितने ज्यादा दर्दनाक रहेंगे आज हम लोग इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।
मौत के बाद उसका स्पेसक्राफ्ट 162 दिनों तक स्पेस में पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा आखिरकार 14 अप्रैल 1958 को यह पृथ्वी के वायुमंडल में घुसा और इंटर करते ही धमाके के साथ छोटे-छोटे टुकड़ो में टूटकर हमेशा के लिए ख़त्म हो गया।
आज हम लोग स्पेस एक्सप्लोरेशन जैसे कई मिशन और इस फील्ड में जो भी तरक्की कर रहे हैं उसमें लाइका जैसे बलिदान का बहुत महत्व है।
रसिया खुद भी इस बात को बहुत अच्छे से समझता है। इसलिए वहां लाइका के सम्मान में कई अलग-अलग लोकेशन पर लाइका के स्मारक बनाए गए है ।इसमें सबसे मुख्य जगह वह है जो मिलिट्री रिसर्च फैसिलिटी में बनाया गया है क्योंकि इस जगह पर लाइका को अंतरिक्ष में जाने के लिए ट्रेंड किया गया था।
कमेंट बॉक्स में लाइका के लिए मिस यू लाइका लिखना बिल्कुल भी ना भूले लेख को पढने के बाद लाइक करे और हमारे पेज को फॉलो करना भी ना भूले धन्यवाद
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